आज 15 जनवरी 2024 को मकर संक्रांति का पावन पर्व और गंगा स्नान का मेला चल रहा है। आज के दिन गंगासागर में स्नान और दान का अपना विशेष महत्व है लोग घी और खिचड़ी खाते हुए इस पर्व को मानते और दान दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करते हैं।
मकर संक्रांति का त्योहार हिंदुओं द्वारा सूर्य देव को समर्पित किया जाता है। इस दिन सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण होते हुए मकर राशि में प्रवेश करते हैं और उत्तरायण की शुरुआत होती है। इसका मतलब है कि सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हैं और दिन लंबे होते हैं। मकर संक्रांति का त्योहार धार्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारणों से महत्वपूर्ण है।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
धार्मिक कारणों में, मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं, जो मकर राशि के स्वामी हैं। इसे पिता-पुत्र के मिलन का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर सागर में जाकर मिली थीं। इस दिन भीष्म पितामह ने भी अपना जीवन त्यागा था, क्योंकि उन्हें लगता था कि उत्तरायण में देह त्यागने वाले को मोक्ष मिलता है।
वैज्ञानिक कारणों में, मकर संक्रांति का यह त्योहार सर्दियों के अंत का भी प्रतीक है। इस दिन से दिन लंबे होने लगते हैं और ठंड कम होने लगती है। इससे वातावरण में उष्णता और उर्जा का संचार होता है। इस दिन सूर्य की किरणें विटामिन डी का स्रोत होती हैं, जो हमारी हड्डियों और रक्त के लिए आवश्यक हैं।
मकर संक्रांति की कहानी | makar Sankranti story
मकर संक्रांति की कहानी एक पौराणिक कथा है, जिसमें बताया गया है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं, जो मकर राशि के स्वामी हैं। यह एक पिता-पुत्र के मिलन का पर्व है, जिसमें मतभेदों के बावजूद प्रेम और सम्मान का भाव दिखाया गया है।
मकर संक्रांति की कहानी के अनुसार, एक बार एक ब्राह्मण नामक हरिदास था, जिसकी पत्नी गुणवती बहुत ही धर्मात्मा और पतिव्रता थी। वह सभी देवी-देवताओं की पूजा करती थी, व्रत रखती थी, दान देती थी और अतिथि सेवा करती थी। लेकिन उसने कभी भी धर्मराज की पूजा नहीं की थी, क्योंकि उसे उनकी उपासना का तरीका नहीं पता था। जब वह बूढ़ी हो गयी और मर गयी, तो धर्मराज के दूत उसे यमलोक ले गए।
यमलोक में धर्मराज ने उसके सभी कर्मों का लेखा-जोखा देखा और उसे प्रशंसा की, लेकिन उन्होंने उसे यह भी बताया कि उसने उनकी पूजा नहीं की थी। गुणवती ने उनसे क्षमा मांगी और उनसे उनकी उपासना का उपाय पूछा। धर्मराज ने उसे बताया कि जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन उनकी पूजा शुरू करनी चाहिए और उस दिन से लेकर पूरे एक साल तक उनकी पूजा करते हुए यह कथा सुननी चाहिए। धर्मराज ने उसे अपनी पूजा के दस नियमों का पालन करने का भी आदेश दिया।
गुणवती ने धर्मराज की बात मानी और उनकी कृपा से मृत्यु लोक पर वापस आ गयी। उसने मकर संक्रांति के दिन धर्मराज की पूजा शुरू की और उनकी कथा सुनी। उसने अपने परिवार और गांव वालों को भी इस बारे में बताया और उन्हें भी धर्मराज की पूजा करने का प्रोत्साहन दिया। इस प्रकार, गुणवती ने धर्मराज की भक्ति का प्रचार किया और उनकी कृपा पाई।
यह थी मकर संक्रांति की कहानी, जो हमें धर्मराज की महिमा और उनकी पूजा के महत्व का बोध कराती है
किन- किन नामों से मानई जाती है मकर संक्रांति
सांस्कृतिक कारणों में, मकर संक्रांति का यह त्योहार भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों और रीतियों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति, गुजरात में उत्तरायण, पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, आंध्र प्रदेश में संक्रांति, बिहार में खिचड़ी, असम में भोगाली बिहू, केरल में मकरविलक्कु और ओडिशा में मकर मेला के नाम से मनाते हैं। इस दिन लोग गुड़ और तिल के लड्डू, खिचड़ी, चूड़ा और दही, रेवड़ी, मूंगफली और गाजक खाते हैं। इस दिन पतंग उड़ाना भी एक लोकप्रिय परंपरा है।