करीब 500 वर्षों से साधु संतों ने मुगल आक्रांताओं द्वारा हुए अत्याचारों के द्वारा तोड़े गए अयोध्या मथुरा काशी समेत हर स्थलों के लिए आवाज उठाते रहे इनमें से श्री राम से जुड़े यादगार स्थलों को लेकर समय-समय पर विरोध प्रदर्शन करते हुए आवाज उठाते रहे । राम मंदिर आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जिसमें हिंदू संगठनों ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद को तोड़कर राम मंदिर का निर्माण करने की मांग की थी।
1984 से जोर शोर से उठाने लगा , राम जन्मभूमि मंदिर का मुद्दा
नबें के दशक में इस आंदोलन की शुरुआत विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता अशोक सिंघल ने 1984 में की थी। उन्होंने राम मंदिर को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया और बजरंग दल, शिव सेना, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और अन्य संगठनों का समर्थन पाया।
– इस आंदोलन का चरम बिंदु 6 दिसंबर 1992 को पहुंचा, जब करीब 2 लाख कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इससे देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगे फूट पड़े, जिनमें करीब 2000 लोगों की मौत हुई।
इसके बाद अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए कई दलीलें, बातचीतें, याचिकाएं और फैसले हुए। अंततः 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि की 2.77 एकड़ जमीन को हिंदू पक्ष को देने का फैसला किया और मुस्लिम पक्ष को अलग से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया, जिसका नाम श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र है। इस ट्रस्ट ने 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर की आधारशिला रखने का फैसला किया। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमिपूजन और शिलान्यास किया।
राम मंदिर का निर्माण अभी जारी है और इसका अनुमानित समय 3 से 3.5 साल है। राम मंदिर का डिजाइन और आकार विहिप द्वारा 1989 में किए गए शिलान्यास के समान होगा, लेकिन इसमें कुछ बदलाव और विस्तार किए जाएंगे।